पंचमढ़ी की प्रागैतिहासिक कला

मध्य प्रदेश के हृदय में बसा पंचमढ़ी, सिर्फ़ एक हिल स्टेशन नहीं है, बल्कि प्रागैतिहासिक कला का खजाना भी समेटे हुए है। सतपुड़ा की रानी के नाम से मशहूर इस जगह पर कई गुफाएँ हैं, जिनकी दीवारों पर आदिमानव ने अपने जीवन और कल्पनाओं को उकेरा है। इन चित्रों में शिकार, नृत्य, संगीत और रोज़मर्रा की ज़िंदगी के दृश्य जीवंत हो उठते हैं।  

पंचमढ़ी की गुफाओं और शैलचित्रों की खोज का श्रेय डी. एच. गॉर्डन को जाता है, जिन्होंने इस क्षेत्र के प्रागैतिहासिक कला को दुनिया के सामने लाया।  

पंचमढ़ी में प्रागैतिहासिक कला के कुछ महत्वपूर्ण स्थल:

  • महादेव: यहाँ जंगली सूअर का एक अनोखा चित्र देखने को मिलता है।  
  • इमली खोह: इस गुफा में भैंसे और बैल के शिकार के रोमांचक दृश्य उकेरे गए हैं।  
  • बनिया बेरी: यहाँ आदिमानवों के सामूहिक नृत्य के चित्र देखने को मिलते हैं, जो उनके सामाजिक जीवन और रीति-रिवाजों की झलक दिखाते हैं।  
  • माटे रोजा: इस गुफा में मानव के दैनिक जीवन के क्रियाकलापों के चित्र मिलते हैं, जो उनके विकास और जीवनशैली पर प्रकाश डालते हैं।  

पंचमढ़ी की प्रागैतिहासिक कला हमें उस समय के मानव जीवन और उनके विचारों को समझने में मदद करती है। ये चित्र हमें बताते हैं कि कैसे आदिमानव प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीवन जीते थे और अपनी कला के ज़रिए खुद को अभिव्यक्त करते थे।  

यह ध्यान देने योग्य है कि पंचमढ़ी में प्रागैतिहासिक कला के चित्रों में मानव आकृतियाँ कम मिलती हैं, जबकि पशुओं के शिकार के चित्र ज़्यादा हैं। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि शिकार उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।  

पंचमढ़ी की प्रागैतिहासिक कला हमारे लिए एक अमूल्य धरोहर है, जिसका संरक्षण करना बेहद ज़रूरी है।

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