बहु-फसल प्रणाली एक ऐसी कृषि पद्धति है जिसमें किसान एक ही खेत में एक ही मौसम में दो या दो से अधिक फसलें उगाते हैं। यह दृष्टिकोण न केवल किसानों की आय को बढ़ाने में सहायक है, बल्कि यह जोखिम को कम करने और भूमि के उपयोग को अधिकतम करने का एक प्रभावी साधन भी है। भारत जैसे देशों में, जहाँ कृषि योग्य भूमि सीमित है और किसानों को अक्सर मानसून के भरोसे रहना पड़ता है, बहु-फसल प्रणाली खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
बहु-फसल प्रणाली क्या है?
बहु-फसल प्रणाली में, किसान एक ही खेत में विभिन्न फसलों को एक साथ या एक के बाद एक उगाते हैं। यह प्रणाली विभिन्न प्रकार की होती है, जैसे कि अंतर-फसल, रिले फसल, और मिश्रित फसल।
- अंतर-फसल (Intercropping): इसमें विभिन्न फसलों को एक साथ एक ही खेत में उगाया जाता है, लेकिन एक निश्चित पैटर्न में। यह पैटर्न पंक्तियों में, स्ट्रिप्स में, या मिश्रित रूप में हो सकता है । उदाहरण के लिए, गन्ने के साथ आलू, लाही, सरसों, लहसुन, या दालें उगाई जा सकती हैं ।
- पंक्ति में अंतर-फसल: इसमें विभिन्न फसलों को अलग-अलग पंक्तियों में बोया जाता है।
- स्ट्रिप्स में अंतर-फसल: इसमें विभिन्न फसलों को स्ट्रिप्स या पट्टियों में बोया जाता है।
- मिश्रित अंतर-फसल: इसमें विभिन्न फसलों को बिना किसी निश्चित पैटर्न के बोया जाता है।
- रिले फसल (Relay Cropping): इसमें दूसरी फसल की बुवाई पहली फसल की कटाई से पहले ही कर दी जाती है । इससे भूमि का उपयोग अधिकतम होता है और समय की बचत होती है । उदाहरण के लिए, मटर के साथ लौकी की खेती की जा सकती है ।
- मिश्रित फसल (Mixed Cropping): इसमें विभिन्न फसलों को एक साथ एक ही खेत में उगाया जाता है। मिश्रित फसल में भी फसलों को एक निश्चित पैटर्न में उगाया जाता है, लेकिन यह पैटर्न अंतर-फसल जितना सख्त नहीं होता है ।
भारत में प्रचलित बहु-फसल प्रणालियाँ
भारत में विभिन्न प्रकार की बहु-फसल प्रणालियाँ प्रचलित हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:
- बहुस्तरीय कृषि प्रणाली: इसमें विभिन्न ऊँचाई वाली फसलों को एक साथ उगाया जाता है, जैसे कि जमीन के अंदर आलू, ऊपर हरी पत्तेदार सब्जियाँ, और मचान पर लौकी या पपीता । कुछ सामान्य बहुस्तरीय कृषि प्रणालियाँ हैं:
- गन्ना-आलू-प्याज
- गन्ना-सरसों
- आलू-बैंगन-भिंडी-पोई
- पालक-मूली-प्याज
- मक्का-चना-मूंगफली
- आम-पपीता-अनार
- नारियल-केला
- नारियल-केला-अनार
- नारियल-केला-कॉफी
- मूंगफली-टमाटर-मिर्च
- गाजर-लाल भाजी-टमाटर
- मूली-धनिया-मिर्च
- एकीकृत कृषि प्रणाली: इसमें फसलों के साथ-साथ पशुपालन, मत्स्य पालन, और कृषि-वानिकी को भी शामिल किया जाता है । इस प्रणाली में, किसान अपनी भूमि का सर्वोत्तम उपयोग करते हैं और विभिन्न स्रोतों से आय प्राप्त करते हैं। उदाहरण के लिए, किसान तालाब में मछली पालन कर सकते हैं, खेत के किनारे पेड़ लगा सकते हैं, और पशुओं के लिए चारा उगा सकते हैं ।
- फसल चक्र: इसमें एक ही खेत में अलग-अलग मौसमों में अलग-अलग फसलें उगाई जाती हैं, जैसे कि खरीफ में धान और रबी में गेहूं । यह मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने और पोषक तत्वों के संतुलन को सुनिश्चित करने में मदद करता है।
बहु-फसल प्रणाली के लाभ और हानियाँ
बहु-फसल प्रणाली किसानों को कई लाभ प्रदान करती है, लेकिन कुछ हानियाँ भी हैं:
लाभ:
- आय में वृद्धि: एक ही खेत से कई फसलों की पैदावार होने से किसानों की आय में वृद्धि होती है ।
- जोखिम में कमी: यदि एक फसल खराब हो जाती है, तो दूसरी फसल से होने वाली आय किसानों को नुकसान से बचा सकती है । यह जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली अनिश्चितताओं से निपटने में भी मदद करता है, क्योंकि विभिन्न फसलें अलग-अलग मौसम की स्थिति के प्रति अलग-अलग प्रतिक्रिया देती हैं ।
- भूमि का अधिकतम उपयोग: बहु-फसल प्रणाली भूमि के प्रत्येक भाग का उपयोग सुनिश्चित करती है, जिससे उत्पादकता बढ़ती है ।
- मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार: विभिन्न फसलों को उगाने से मिट्टी के पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है और मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है ।
- कीट और रोग नियंत्रण: विभिन्न फसलों को एक साथ उगाने से कीट और रोगों का प्रकोप कम होता है ।
- पर्यावरण संरक्षण: बहु-फसल प्रणाली मिट्टी के कटाव को कम करने , पानी के संरक्षण और जैव विविधता को बढ़ावा देने में मदद करती है ।
- छोटे और सीमांत किसानों के लिए लाभ: यह प्रणाली छोटे और सीमांत किसानों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है, क्योंकि यह उन्हें सीमित भूमि से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने और अपनी आय बढ़ाने में मदद करती है ।
हानियाँ:
- अधिक श्रम की आवश्यकता: कई फसलों को एक साथ प्रबंधित करने के लिए अधिक श्रम की आवश्यकता होती है ।
- विशेषज्ञता की आवश्यकता: विभिन्न फसलों की आवश्यकताओं को समझने और उन्हें उचित देखभाल प्रदान करने के लिए किसानों को विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है ।
- बाजार की अनिश्चितता: कभी-कभी, कई फसलों के लिए बाजार में उचित मूल्य नहीं मिल पाता है ।
- जल प्रबंधन: विभिन्न फसलों की जल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उचित जल प्रबंधन आवश्यक है ।
बहु-फसल प्रणाली अपनाने के लिए आवश्यक बातें
बहु-फसल प्रणाली को सफलतापूर्वक अपनाने के लिए किसानों को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- फसल चयन: ऐसा चयन करें जिसमें फसलें एक-दूसरे के साथ अच्छी तरह से उग सकें और उनकी पोषक तत्वों की आवश्यकताएँ भिन्न हों। उदाहरण के लिए, दलहनी फसलों को अनाज की फसलों के साथ उगाना लाभकारी होता है, क्योंकि दलहनी फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती हैं, जो अनाज की फसलों के लिए अत्यंत उपयोगी साबित होता है।
- भूमि की तैयारी: भूमि की तैयारी को यथासंभव संपूर्ण रूप से करें और खाद तथा उर्वरक का उचित मात्रा में प्रयोग करें। साथ ही, मिट्टी की जांच कराना भी आवश्यक है, ताकि यह निर्धारण किया जा सके कि मिट्टी में किस प्रकार के पोषक तत्वों की कमी है, और उसी के अनुसार खाद और उर्वरक का सही उपयोग किया जा सके।
- बीज की गुणवत्ता: अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों का उपयोग करें जो रोग प्रतिरोधी हों ।
- जल प्रबंधन: विभिन्न फसलों की जल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उचित सिंचाई प्रणाली का उपयोग करें ।
- कीट और रोग नियंत्रण: कीट और रोगों के प्रकोप को रोकने के लिए उचित उपाय करें ।
- फसल कटाई के बाद का प्रबंधन: फसल कटाई के बाद, अनाज को सुखाना, साफ करना, और भंडारण करना महत्वपूर्ण है ताकि उसे नुकसान न पहुँचे।
बहु-फसल प्रणाली से संबंधित सरकारी योजनाएँ
भारत सरकार किसानों को बहु-फसल प्रणाली अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनाएँ चला रही है।
योजना का नाम | उद्देश्य |
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प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना | किसानों को फसल खराब होने के जोखिम से बचाना |
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना | किसानों को सिंचाई सुविधाएं प्रदान करना |
कृषि विपणन अवसंरचना (AMI) योजना | किसानों को अपनी उपज के विपणन में मदद करना |
ब्याज सहायता योजना (ISS) | किसानों को कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करना |
बहु-फसल प्रणाली पर आधारित सफलता की कहानियाँ
भारत में कई किसान बहु-फसल प्रणाली को अपनाकर सफलता प्राप्त कर रहे हैं।
- श्रीमती रानी (आंध्र प्रदेश): श्रीमती रानी ने प्राकृतिक खेती के साथ बहु-फसल प्रणाली को अपनाकर अपनी आय में वृद्धि की है । उन्होंने अपनी 0.4 एकड़ भूमि में आठ किस्मों की फसलें उगाईं, जिनमें गन्ना, गेहूं, मटर, टमाटर, शिमला मिर्च, मसूर, कोलोसिया, और बॉटलगार्ड शामिल थे ।
- कालूराम (बांसवाड़ा): कालूराम ने अपनी छोटी जोत में टमाटर और स्वीट कॉर्न जैसी फसलों को उगाकर सफलता प्राप्त की है । उन्होंने टमाटर की खेती से लगभग 50 हजार रुपये की आमदनी प्राप्त की ।
- छिदामी यादव (बुंदेलखंड): छिदामी यादव ने जैविक खेती के साथ बहु-फसल प्रणाली को अपनाकर अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार किया है । उन्होंने चना, गेहूं, जौ, और विभिन्न सब्जियों की खेती की ।
- अरुण वर्मा (फतेहपुर): अरुण वर्मा ने नौकरी के साथ-साथ खेती में भी सफलता प्राप्त की है । उन्होंने गेहूं, धान, तिलहन, और टमाटर जैसी फसलों की खेती की ।
बहु-फसल प्रणाली से संबंधित नवीनतम शोध और विकास
बहु-फसल प्रणाली पर निरंतर शोध और विकास हो रहा है।
- प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय मिशन (NMNF): यह मिशन बहु-फसल प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है ।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR): ICAR विभिन्न फसलों के लिए उपयुक्त बहु-फसल प्रणालियों पर शोध कर रहा है । ICAR ने “पूर्व में तैयार क्यारियों में बुआई तकनीक” विकसित की है, जिसमें कपास की बुआई से पहले खेत में मेड़ और क्यारी तैयार करके सिंचाई की जाती है। इससे खरपतवार के बीजों का अंकुरण हो जाता है और कपास की फसल को खरपतवारों से बचाया जा सकता है ।
बहु-फसल प्रणाली भारतीय कृषि के क्षेत्र में एक प्रभावशाली तकनीक है, जिससे किसानों को अपनी आय में वृद्धि, जोखिम को कम करने और भूमि का अधिकतम उपयोग करने में सहायता मिलती है। यह प्रणाली न केवल पर्यावरण की रक्षा करती है, बल्कि खाद्य सुरक्षा को भी सुनिश्चित करती है। हालांकि, इस प्रणाली को अपनाने से पूर्व किसानों को अपनी स्थानीय परिस्थितियों, विभिन्न फसलों की आवश्यकताओं और बाजार की मांग पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है। सरकार द्वारा प्रस्तुत योजनाओं का लाभ उठाकर और ताजा अनुसंधान को अपनाकर, किसान इस बहु-फसल प्रणाली से अधिकतम लाभ हासिल कर सकते हैं।