भारतीय शास्त्रीय संगीत में ताल का महत्वपूर्ण स्थान है। यह संगीत को एक निश्चित समय-सीमा में बाँधता है और उसे लयबद्ध बनाता है। ताल के बिना संगीत अधूरा है, और यह संगीत की रीढ़ की हड्डी का काम करता है।
यह लेख विभिन्न तालों का परिचय प्रदान करता है।
तालों के बीच तुलना और अंतर
विभिन्न तालों की तुलना और अंतर निम्नलिखित तालिका में दर्शाए गए हैं:
ताल | मात्राएँ | विभाजन | ताली | खाली | जाति |
---|---|---|---|---|---|
तीवर | 7 | 3/2/2 | 1, 4 | 6 | मिश्र |
शिवर | 7 | – | – | – | – |
रूपक | 7 | – | – | – | – |
सूलताल | 10 | 2/2/2/2/2 | 1, 5, 7 | 3, 9 | सम |
जल | 10 | – | – | – | – |
झपताल | 10 | 2/3/2/3 | 1, 3, 8 | 6 | खंड |
एकताल | 12 | 2/2/2/2/2/2 | 1, 5, 9, 11 | 3, 7 | सम |
क्वारताल | 12 | – | – | – | – |
कंकर का दर्श | 12 | – | – | – | – |
चौताल | 12 | 2/2/2/2/2/2 | 1, 5, 9, 11 | 3, 7 | सम |
झूमरताल | 14 | 3/4/3/4 | 1, 6, 11 | 8 | विषम |
आद्चारताल | 14 | 5/2/3/4 | 1, 6, 11 | 8 | विषम |
दीपचंदी | 14 | 5/2/3/4 | 1, 6, 11 | 8 | विषम |
भमार | 14 | – | – | – | – |
पंचमसाल | 15 | – | – | – | – |
गजजमान | 15 | – | – | – | – |
तीनताल | 16 | 4/4/4/4 | 1, 5, 13 | 9 | सम |
तिलगांग | 16 | – | – | – | – |
लक्ष्मी | 18 | – | 1, 2, 3, 5, 7, 9, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17 | 4, 8, 18 | सम |
ब्रह्म | 28 | – | – | – | – |
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तीनताल
तीनताल हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का सबसे लोकप्रिय और प्रचलित ताल है। यह 16 मात्राओं का ताल है, जिसे चार समान विभागों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक विभाग में चार मात्राएँ होती हैं। तीनताल में तीन ताली और एक खाली होती है। ताली पहली, पाँचवीं और तेरहवीं मात्रा पर होती है, जबकि खाली नौवीं मात्रा पर होती है। तीनताल का प्रयोग शास्त्रीय संगीत, उपशास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत और फ़िल्म संगीत में किया जाता है। यह विलंबित से द्रुत लय तक में बजाया जा सकता है।
तीनताल के कुछ बोल इस प्रकार हैं:
धा, धिं, धिं, धा, धा, धिं, धिं, धा, धा, तिं, तिं, ता, ता, धिं, धिं, धा।
तीनताल के कुछ टुकड़े इस प्रकार हैं:
- धा धिं धिं धा। धा धिं धिं धा।
- धा तिं तिं ता। ता धिं धिं धा।
- धा त्रक धिं धा। धा त्रक धिं धा।
- धा त्रक तिं ता। ता त्रक धिं धा।
- धागे धिग धिं धा। धागे धिग धिं धा। धागे तिग तिं ता।
- तागे धिग धिं धा।
- धागे त्रकिट तूना कत्ता। त्रकिट तूना कत्ता त्रकिट।
- तागे त्रकिट तूना कत्ता। त्रकिट तूना कत्ता त्रकिट।
- धागे त्रकिट तूना कत्ता। त्रकिट तूना कत्ता त्रकिट।
- धा तूना कत्ता त्रकिट। धा तूना कत्ता त्रकिट।
- दीं नग किड़ नग। धागे त्रकिट दिने किने।
- तीं नग किड़ नक। धागे त्रकिट दिने किने।
- दीं नग किड़ नग। दीं नग किड़ नक। धागे त्रकिन दिने किने।
- तीं नग किड़ नक।
- धागे तिट घिड़ नग। तागे तिट किड़ नक। धिद्ध धिद्ध धिन ता।
- किड़ नग धागे तिट।
- धा s धिन ता।
- किड़ नक धागे तिट। ता s धिन ता। किड़ नक धागे तिट।
- धागे तिट घिड़ नग। धागे तिट घिड़ नग।
- तागे तिट घिड़ नग। धागे तिट घिड़ नग।
- धा किट धा कृधा। किट धागे तिट धीना। गीना त्रकिट तूना कत्ता।
- घिड़ा sन् नागे तिट।
- ता किट ता कृधा। किट तागे तिट तीना।
- गीना त्रकिट तूना कत्ता। किड़ा sन् नागे तिट।
- धागे त्रकिट धिन धिन। धिद्ध धिद्ध धिट तिट। त्रकिट धिने धित त्रकिट।
- धिट धिट धागे तिट।
- तागे त्रकिट दिन दिन। धिद्ध धिद्ध धिट तिट।
- त्रकिट धिने धित त्रकिट। धिट तिट धागे तिट।
- दीं नग किड़ नक। धागे त्रकिट दिने किने। धा त्रकिट दिने किने।
- धा त्रकिट दिने किने।
- तिट कत गद गिन।
- धाती धाती टक तग। दगि नधा तीधा तिट। कत गद गिन धाती।
तीनताल का ऐतिहासिक महत्व भी है। यह एक प्राचीन ताल है जिसका प्रयोग सदियों से किया जा रहा है। यह दक्षिण भारत के आदि ताल से मिलता-जुलता है। तीनताल और आदि ताल, दोनों ही अत्यंत प्राचीन ताल हैं।
तीनताल के बारे में कुछ रोचक तथ्य इस प्रकार हैं:
- यवन काल में इस ताल का नाम खमसा ताल था।
- इस ताल के अनेक रूप भिन्न-भिन्न नामों से प्रचार में हैं, जैसे दिलवाड़ा ताल, अधा ताल, पंजाबी ताल तथा जत ताल।
- तीनताल मध्य, द्रुत और अति द्रुत लय में बजाने के लिए अत्यंत उपयुक्त ताल है।
- तबले पर एकल वादन एवं संगत में इसका खूब प्रयोग होता है।
- अधिकतर मध्य लय की छोटे ख्याल की बंदिशें, तराना तथा सितार आदि तंत्र वाद्यों में मसीत खानी और रजा खानी गति तीन ताल में ही निबद्ध होती हैं।
- कथक नृत्य में तीन ताल का प्रमुख रूप से प्रयोग होता है।
- बनारस घराने के पंडित अनोखे लाल जी ने इस ताल में सिद्धि प्राप्त की थी।
तीनताल की सममित संरचना इसे सीखने और बजाने में आसान बनाती है, और यह विभिन्न प्रकार के संगीत में इसका उपयोग करने की अनुमति देती है।
झुमरताल
झुमरताल 14 मात्राओं की ताल है। यह विषम पदी ताल है, जिसके विभाग 3/4/3/4 मात्राओं के होते हैं। इसमें पहली, छठी और ग्यारहवीं मात्रा पर ताली तथा आठवीं मात्रा पर खाली होती है।
झुमरताल का प्रयोग नायक बक्शू के ध्रुपदों में किया जाता है। यह खुले बोलों की ताल है। झुमरताल के बोल इस प्रकार हैं: धि ट धि ना धि ना धि ट धि ना धि ना धि ट धि ना धि ना धि ना धि ना।
ध्रुपद गायन के बारे में विस्तृत जानकारी इस प्रकार है:
- ध्रुपद गायन शैली का आविष्कार 15वीं शताब्दी में ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर ने किया था।
- ध्रुपद के चार भाग होते हैं: स्थाई, अंतरा, संचारी और आभोग।
- ध्रुपद के शब्द अधिकतर ब्रिज भाषा में होते हैं।
- ध्रुपद गायकी में वीर और श्रृंगार रस की प्रधानता होती है।
- ध्रुपद खुले बोलो की ताल पर गाया जाता है।
- ध्रुपद में सर्वप्रथम नोम तोम के आलाप से विस्तार किया जाता है।
- ध्रुपद गायकी में धीमी गति से गीत को आरंभ किया जाता है।
झुमरताल ध्रुपद गायन के लिए एक महत्वपूर्ण ताल है और यह इसकी गंभीरता और गहराई को बढ़ाता है।
एकताल
एकताल 12 मात्राओं की ताल है। यह सम पदी ताल है, जिसके विभाग 2/2/2/2/2/2 मात्राओं के होते हैं। इसमें 1, 5, 9 और 11वीं मात्रा पर ताली तथा 3 और 7वीं मात्रा पर खाली होती है।
एकताल का प्रयोग ख्याल, तराना और गत आदि में किया जाता है। यह विलंबित से द्रुत लय तक में बजाया जा सकता है।
एकताल के कुछ बोल इस प्रकार हैं: धिन, धिन, धागे, तिरकिट, तू ना कत ता, धागे, तिरकिट, धीना।
एकताल एक बहुमुखी ताल है जिसका उपयोग विभिन्न लयों और शैलियों में किया जा सकता है।
आद्चारताल
आद्चारताल 14 मात्राओं की ताल है, जोकि एक विषम पदी ताल है। इसके विभाग 5/2/3/4 मात्राओं के होते हैं। पहली, छठी और ग्यारहवीं मात्रा पर ताली तथा आठवीं मात्रा पर खाली होती है।
पंचमसाल
पंचमसाल 15 मात्राओं की ताल है। यह विषम पदी ताल है।
क्वारताल
क्वारताल 12 मात्राओं की ताल है। यह सम पदी ताल है।
सूलताल
सूलताल 10 मात्राओं की ताल है। यह सम पदी ताल है, जिसके विभाग 2/2/2/2/2 मात्राओं के होते हैं। इसमें 1, 5 और 7 वीं मात्रा पर ताली तथा 3 और 9 वीं मात्रा पर खाली होती है।
सूलताल का प्रयोग ध्रुपद गायन में किया जाता है। यह पखावज पर बजाई जाने वाली ताल है।
सूलताल के कुछ बोल इस प्रकार हैं: धा, धा, दिन, ता, किट, धा, टट, कत, गद, गन।
सूलताल पखावज की एक महत्वपूर्ण ताल है और यह ध्रुपद गायन की गंभीरता को बढ़ाता है।
तीवर
तीवर एक स्वर है, ताल नहीं। भारतीय शास्त्रीय संगीत में जब कोई स्वर अपनी शुद्धावस्था से ऊपर होता है तब उसे तीव्र विकृत स्वर कहते हैं। ऐसा स्वर मध्यम है। जिसे म के लघु रूप में भी जाना जाता है। अनेक रागों में शुद्ध के साथ अथवा केवल तीव्र मध्यम का प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए राग हिंडोल में केवल तीव्र मध्यम का प्रयोग होता है। जिसका अर्थ है हिंडोल राग में मध्यम स्वर अपने निश्चित स्थान से ऊपर की ओर प्रयोग किया जाता है। राग यमन कल्याण में शुद्ध और तीव्र दोनों मध्यम प्रयोग किए जाते हैं।
भमार
भमार 14 मात्राओं की ताल है। यह विषम पदी ताल है।
गजजमान
गजजमान 15 मात्राओं की ताल है। यह विषम पदी ताल है।
लक्ष्मी
लक्ष्मी ताल 18 मात्राओं की ताल है। यह सम पदी ताल है। इसमें 1, 2, 3, 5, 7, 9, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, और 17 पर ताली तथा 4, 8, और 18 पर खाली होती है।
शिवर
शिवर ताल 7 मात्राओं की ताल है। यह विषम पदी ताल है।
ब्रह्म
ब्रह्म ताल 28 मात्राओं की ताल है। यह सम पदी ताल है।
दीपकर्म
दीपकर्म ताल 14 मात्राओं की ताल है। यह विषम पदी ताल है।
जल
जल ताल 10 मात्राओं की ताल है। यह सम पदी ताल है।
तिलगांग
तिलगांग ताल 16 मात्राओं की ताल है। यह सम पदी ताल है।
झूमर
झूमर ताल 14 मात्राओं की ताल है। यह विषम पदी ताल है।
कंकर का दर्श
कंकर का दर्श ताल 12 मात्राओं की ताल है। यह सम पदी ताल है।
तालों का विकास और परिवर्तन
तालों का विकास और परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया है। प्राचीन काल से ही तालों में बदलाव होते रहे हैं। नए तालों का आविष्कार हुआ है और पुराने तालों में सुधार किया गया है। प्राचीन काल में ताल वाद्यों पर ताल का कोई ठेका नहीं बजाया जाता था, जबकि गाने आदि की संगत का विधान था। अवनद्ध वाद्यों पर ठेका बजाने की प्रथा मध्य युग से प्रारम्भ हुई।
तालों का सांस्कृतिक महत्व
तालों का भारतीय संस्कृति में गहरा महत्व है। ये संगीत, नृत्य और धार्मिक अनुष्ठानों का अभिन्न अंग हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत में ताल को संगीत का प्राण कहा गया है।
ताल के विभिन्न पहलू
ताल के विभिन्न पहलू हैं, जैसे सम, ताली, खाली, विभाग, आदि।
- सम: किसी भी ताल की प्रथम मात्रा को सम कहते हैं। सामान्यतः सम पर ताली होती है।
- ताली: ताली सशब्द क्रिया है, जिसे हाथ पर ताली देकर दिखाया जाता है।
- खाली: खाली निशब्द क्रिया है, जिसे हाथ को हिलाकर दिखाया जाता है।
- विभाग: ताल को छोटे-छोटे खंडों में विभाजित किया जाता है, जिन्हें विभाग कहते हैं।
ताल भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह संगीत को लयबद्ध बनाता है और उसे एक निश्चित समय-सीमा में बाँधता है। विभिन्न तालों का अपना अलग-अलग महत्व और प्रयोग है। ताल संगीत को एक रूप और सुंदरता प्रदान करता है, और यह विभिन्न रागों और शैलियों को अभिव्यक्त करने में मदद करता है।