बचपन जीवन का सबसे कोमल और महत्वपूर्ण चरण होता है, जहाँ बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से विकसित होते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से, भारत में बच्चों की मृत्यु दर और रुग्णता एक गंभीर समस्या बनी हुई है। हालाँकि, पिछले तीन दशकों में बाल जीवन रक्षा के क्षेत्र में दुनिया ने उल्लेखनीय प्रगति की है, और लाखों बच्चों के जीवित रहने की संभावना 1990 की तुलना में बेहतर है – 2022 में 5 वर्ष की आयु तक पहुँचने से पहले 27 बच्चों में से 1 की मृत्यु हो गई, जबकि 1990 में यह आंकड़ा 11 में से 1 था। फिर भी, भारत में, हर 21 बच्चों में से एक बच्चा अपना पाँचवा जन्मदिन मनाने से पहले ही मर जाता है। यह लेख इस समस्या के कारणों, प्रभावों और समाधानों पर प्रकाश डालेगा, ताकि हम बच्चों के स्वास्थ्य और कल्याण को बेहतर बना सकें।
बच्चों की मृत्यु दर और रुग्णता क्या है?
बच्चों की मृत्यु दर से तात्पर्य पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु की संख्या से है, जबकि रुग्णता का अर्थ है बच्चों में बीमारियों और स्वास्थ्य समस्याओं का प्रसार। भारत में, कई कारक इन समस्याओं में योगदान करते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- कुपोषण: कुपोषण बच्चों की मृत्यु का एक प्रमुख कारण है, क्योंकि यह उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है और उन्हें संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है।
- संक्रामक रोग: निमोनिया, दस्त और मलेरिया जैसे संक्रामक रोग बच्चों में मृत्यु और रुग्णता के प्रमुख कारण हैं।
- कम वजन: जन्म के समय बच्चे का वजन कम होना कुपोषण का एक प्रमुख संकेतक है और बाल मृत्यु दर का एक निर्धारक कारक है।
- नवजात शिशुओं की देखभाल का अभाव: जन्म के समय और उसके बाद उचित देखभाल का अभाव नवजात शिशुओं में मृत्यु का एक प्रमुख कारण है।
- स्वच्छता का अभाव: गंदे पानी और अस्वच्छ वातावरण के कारण बच्चों में दस्त और अन्य संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है।
- शिक्षा और जागरूकता की कमी: माता-पिता को बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण के बारे में जानकारी का अभाव होने से वे उचित देखभाल नहीं कर पाते हैं।
- लिंग भेद: भारत में लड़कियों की तुलना में लड़कों की मृत्यु दर कम होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि लड़कियों को अक्सर स्वास्थ्य सेवाओं और पोषण तक समान पहुंच नहीं मिल पाती है।
- चिकित्सीय प्रमाणपत्रों का अभाव: भारत में अधिकांश मौतें, जिनमें बच्चों की मौतें भी शामिल हैं, चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित नहीं होती हैं क्योंकि अधिकांश मौतें घर पर, ग्रामीण क्षेत्रों में और स्वास्थ्य कार्यकर्ता द्वारा ध्यान दिए बिना होती हैं। इससे डेटा संग्रह और विश्लेषण में कठिनाई होती है।
उत्तर प्रदेश में बच्चों की मृत्यु दर और रुग्णता
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य है, और यहाँ बच्चों की मृत्यु दर और रुग्णता भी अधिक है। राज्य में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर नवजात मृत्यु दर 32 है, जो देश में सबसे अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर और भी अधिक है, जहाँ प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 34 मौतें होती हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह दर 21 है। राज्य में प्रतिदिन लगभग 700 बच्चे पाँच वर्ष की आयु से पहले ही मर जाते हैं। इसके कुछ प्रमुख कारण हैं:
- गरीबी: उत्तर प्रदेश में गरीबी का स्तर अधिक है, जिससे बच्चों को उचित पोषण और स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल पाती हैं।
- कुपोषण: राज्य में कुपोषण की दर भी अधिक है, जिससे बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है और वे बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। उत्तर प्रदेश में प्रोटीन-ऊर्जा कुपोषण और आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया बच्चों में मृत्यु और रुग्णता के प्रमुख कारण हैं।
- स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुँच: ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सीमित है, जिससे बच्चों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता है।
- आर्थिक तंगी: आर्थिक तंगी के कारण कई परिवार समय पर और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त नहीं कर पाते हैं। यह न केवल चिकित्सा सेवाओं को प्राप्त करने में बाधा डालता है, बल्कि बच्चों की बुनियादी देखभाल में भी बाधा उत्पन्न करता है।
- जागरूकता की कमी: माता-पिता को बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण के बारे में जानकारी का अभाव होने से वे उचित देखभाल नहीं कर पाते हैं।
सरकार के प्रयास
भारत सरकार ने बच्चों की मृत्यु दर और रुग्णता को कम करने के लिए कई कार्यक्रम और योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें शामिल हैं:
- प्रजनन और बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RCH): 1997 में, भारत सरकार ने शिशु, बाल और मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए RCH कार्यक्रम शुरू किया।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM): NHM का उद्देश्य स्वास्थ्य सेवाओं को सभी तक पहुँचाना है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। इसके तहत, बच्चों के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जैसे कि नियमित टीकाकरण, नवजात शिशुओं की देखभाल, कुपोषण का प्रबंधन, और दस्त और निमोनिया जैसी बीमारियों की रोकथाम।
- जननी सुरक्षा योजना (JSY): JSY का उद्देश्य गर्भवती महिलाओं को संस्थागत प्रसव के लिए प्रोत्साहित करना है, ताकि मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सके।
- जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK): JSSK के तहत, गर्भवती महिलाओं और बीमार शिशुओं को सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में मुफ्त इलाज और देखभाल प्रदान की जाती है।
- सुरक्षित मातृत्व आश्वासन (SUMAN): SUMAN का उद्देश्य सभी गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को सम्मानजनक और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना है।
- राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK): RBSK के तहत, 0 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों की 30 स्वास्थ्य स्थितियों (जैसे कि बीमारियाँ, कमियाँ, दोष और विकासात्मक देरी) के लिए जाँच की जाती है ताकि बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार हो सके।
- उत्तर प्रदेश तकनीकी सहायता इकाई (UP-TSU): UP-TSU प्रजनन, मातृ, नवजात शिशु, बाल और किशोर स्वास्थ्य और पोषण के लिए राज्य स्तर पर तकनीकी-प्रबंधकीय सहायता प्रदान करती है।
- लक्ष्य: भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP) 2017 ने 2025 तक पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर के लिए 23 प्रति 1000 जीवित जन्म और नवजात मृत्यु दर के लिए 16 प्रति 1000 जीवित जन्म का लक्ष्य रखा है। भारत सरकार ने इंडिया न्यूबॉर्न एक्शन प्लान के तहत 2030 तक प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 10 से कम नवजात मृत्यु दर का लक्ष्य भी रखा है।
गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) की भूमिका
कई NGOs भी बच्चों की मृत्यु दर और रुग्णता को कम करने के लिए काम कर रहे हैं। ये संगठन विभिन्न तरीकों से योगदान करते हैं, जैसे कि:
- जागरूकता फैलाना: बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण के बारे में समुदायों में जागरूकता फैलाना।
- स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना: ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना, जहाँ सरकारी सुविधाएं सीमित हैं।
- माता-पिता को शिक्षित करना: माता-पिता को बच्चों की उचित देखभाल के बारे में शिक्षित करना।
- सरकार के साथ सहयोग करना: सरकार के कार्यक्रमों को लागू करने में सहयोग करना।
- ARMMAN: ARMMAN एक ऐसा NGO है जो भारत में मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए काम करता है। इसके प्रमुख कार्यक्रमों में Kilkari और Mobile Academy शामिल हैं। Kilkari एक मोबाइल-आधारित सेवा है जो गर्भवती महिलाओं और माताओं को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी प्रदान करती है, जबकि Mobile Academy स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने के लिए एक मोबाइल-आधारित कार्यक्रम है।
टीकाकरण का महत्व
टीकाकरण बच्चों को कई जानलेवा बीमारियों से बचाने का एक प्रभावी तरीका है। भारत सरकार का सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (UIP) बच्चों को कई बीमारियों, जैसे कि तपेदिक, डिप्थीरिया, काली खांसी, पोलियो, टेटनस, हेपेटाइटिस बी और खसरा से बचाने के लिए टीके प्रदान करता है। समय पर टीकाकरण करवाने से बच्चों की मृत्यु दर और रुग्णता को कम करने में मदद मिलती है।
बच्चों में आम बीमारियों के लक्षण
बच्चों में कई आम बीमारियाँ होती हैं, जिनके लक्षणों को पहचानना महत्वपूर्ण है ताकि समय पर इलाज करवाया जा सके। कुछ आम बीमारियों और उनके लक्षणों में शामिल हैं:
- निमोनिया: खांसी, बुखार, सांस लेने में तकलीफ।
- दस्त: पतले दस्त, उल्टी, निर्जलीकरण।
- मलेरिया: बुखार, ठंड लगना, सिरदर्द, शरीर में दर्द।
- खसरा: बुखार, खांसी, नाक बहना, शरीर पर लाल चकत्ते।
- कान का संक्रमण: कान में दर्द, बुखार, चिड़चिड़ापन।
बच्चे के लिए चिकित्सा सहायता कब लेनी चाहिए
यदि आपके बच्चे में निम्नलिखित लक्षण दिखाई दें, तो तुरंत चिकित्सा सहायता लें:
- तेज बुखार
- सांस लेने में तकलीफ
- बेहोशी या अचेत अवस्था
- लगातार उल्टी या दस्त
- शरीर पर नीले धब्बे या चकत्ते
- अत्यधिक चिड़चिड़ापन या सुस्ती
- खाना-पीना बंद कर देना
माता-पिता और परिवारों की भूमिका
बच्चों की मृत्यु दर और रुग्णता को कम करने में माता-पिता और परिवारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वे निम्नलिखित तरीकों से योगदान कर सकते हैं:
- उचित पोषण: बच्चों को उचित पोषण प्रदान करना, जिसमें स्तनपान, पूरक आहार और सूक्ष्म पोषक तत्व शामिल हैं।
- स्वच्छता: बच्चों के आसपास स्वच्छता बनाए रखना, जैसे कि हाथ धोना, साफ पानी पीना, और शौचालय का उपयोग करना।
- टीकाकरण: बच्चों का समय पर टीकाकरण करवाना।
- बीमारियों के लक्षणों को पहचानना: बच्चों में बीमारियों के लक्षणों को पहचानना और समय पर इलाज करवाना।
- जागरूक रहना: बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण के बारे में जागरूक रहना और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से सलाह लेना।
बच्चों की मृत्यु दर और रुग्णता भारत में एक गंभीर समस्या है, लेकिन इसे सरकार, NGOs, और माता-पिता के संयुक्त प्रयासों से कम किया जा सकता है। हमें बच्चों के स्वास्थ्य और कल्याण को प्राथमिकता देनी होगी, ताकि वे स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सकें। हालाँकि भारत ने बाल मृत्यु दर को कम करने में प्रगति की है, लेकिन यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भारत में अभी भी बड़ी संख्या में बच्चों की मृत्यु ऐसी बीमारियों से हो रही है जिनसे बचा जा सकता है। इसके लिए हमें स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने के साथ-साथ गरीबी और शिक्षा जैसे सामाजिक निर्धारकों को भी संबोधित करना होगा। सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (CHW) की भूमिका भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच प्रदान करने और शिक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बच्चों की मृत्यु दर और रुग्णता को कम करने के लिए सरकार, NGOs, समुदायों और परिवारों को मिलकर काम करना होगा।