भारत के प्रागैतिहासिक कला केंद्र (Prehistoric Art Centers of India)

भारत के प्रागैतिहासिक कला केंद्र: एक विस्तृत अध्ययन

प्रागैतिहासिक कला, मानव इतिहास के उस कालखंड की कला है जब लेखन का आविष्कार नहीं हुआ था। यह कला आदिमानव की रचनात्मकता और अभिव्यक्ति का अद्वितीय उदाहरण है। भारत में प्रागैतिहासिक कला के प्रमाण पुरापाषाण काल (Paleolithic), मध्यपाषाण काल (Mesolithic) और नवपाषाण काल (Neolithic) में मिलते हैं। यह कला न केवल उस समय के मानव जीवन, उनकी सोच और उनकी गतिविधियों की जानकारी देती है, बल्कि यह भारतीय कला के विकास को समझने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्रमुख प्रागैतिहासिक कला केंद्र:

भारत में कई ऐसे स्थल हैं जहाँ प्रागैतिहासिक कला के उत्कृष्ट उदाहरण मिलते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख केंद्र निम्नलिखित हैं:

 * भीमबेटका (मध्य प्रदेश):

भीमबेटका एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, जो अपनी शैलचित्रों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ लगभग 700 से अधिक शैलाश्रय हैं, जिनमें से 500 में चित्र बने हुए हैं। ये चित्र प्रागैतिहासिक काल के मानव जीवन, जैसे शिकार, नृत्य, पशु-पक्षी, और ज्यामितीय आकृतियों को दर्शाते हैं। इन चित्रों में गेरू, चारकोल और अन्य प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया गया है।

 * अजंता एवं एलोरा (महाराष्ट्र):

हालांकि अजंता और एलोरा मुख्य रूप से ऐतिहासिक काल (बौद्ध, हिंदू और जैन धर्म से संबंधित) की कला के लिए जाने जाते हैं, यहाँ कुछ प्रारंभिक चित्र प्रागैतिहासिक काल के भी माने जाते हैं। इन गुफाओं में की गई चित्रकारी भारतीय कला की उत्कृष्टता का प्रतीक है।

 * बाघ गुफाएँ (मध्य प्रदेश):

बाघ गुफाओं में भी शैलचित्र पाए गए हैं, जो भीमबेटका के चित्रों से मिलते जुलते हैं। ये चित्र भी शिकार, पशु और मानव जीवन को दर्शाते हैं।

 * आदमगढ़ (मध्य प्रदेश):

आदमगढ़ में भी बड़ी संख्या में शैलचित्र मिले हैं, जो प्रागैतिहासिक काल के मानव जीवन और उनकी गतिविधियों पर प्रकाश डालते हैं।

 * कुरनूल गुफाएँ (आंध्र प्रदेश):

कुरनूल गुफाओं में भी शैलचित्र पाए गए हैं, जिनमें जानवरों और ज्यामितीय आकृतियों का चित्रण है।

 * लखियार (उत्तराखंड):

लखियार में भी शैलचित्रों के प्रमाण मिले हैं, जो प्रागैतिहासिक काल की कलात्मक गतिविधियों को दर्शाते हैं।

 * मेहरगढ़ (पाकिस्तान – बलूचिस्तान):

मेहरगढ़ भले ही भारत में नहीं है, लेकिन यह नवपाषाण काल का एक महत्वपूर्ण स्थल है, जहाँ कृषि और पशुपालन के शुरुआती प्रमाण मिले हैं। यहाँ की कला में मृदभांड और अन्य कलाकृतियाँ शामिल हैं।

अन्य महत्वपूर्ण स्थल:

इन प्रमुख केंद्रों के अलावा, भारत में कई अन्य स्थानों पर भी प्रागैतिहासिक कला के प्रमाण मिले हैं, जैसे कि

  • मिर्ज़ापुर (उत्तर प्रदेश)
  • पंचमढ़ी (मध्य प्रदेश)
  • रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
  • होशंगाबाद (मध्य प्रदेश)
  • बेलारी (कर्नाटक)

प्रागैतिहासिक कला की विशेषताएं:

 * विषय-वस्तु: प्रागैतिहासिक कला में आमतौर पर जानवरों (जैसे हाथी, घोड़े, बाघ, हिरण), मानव आकृतियों (शिकार करते हुए, नृत्य करते हुए), ज्यामितीय आकृतियों (त्रिकोण, वृत्त) और दैनिक जीवन के दृश्यों का चित्रण होता था।

 * तकनीक: इन चित्रों को बनाने के लिए प्राकृतिक रंगों (जैसे गेरू, चूना, चारकोल) का उपयोग किया जाता था। रंगों को पत्थरों को पीसकर और पानी में मिलाकर बनाया जाता था।

 * शैली: प्रागैतिहासिक कला की शैली सरल और प्रतीकात्मक होती थी। चित्रों में रेखाओं और आकारों का स्पष्ट उपयोग किया जाता था।

 * उपकरण: चित्रों को बनाने के लिए पत्थर के औजारों, हड्डियों और जानवरों के बालों का उपयोग किया जाता था।

प्रागैतिहासिक कला का महत्व:

 * ऐतिहासिक: प्रागैतिहासिक कला, भारतीय इतिहास के प्रारंभिक काल को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। यह उस समय के मानव जीवन, उनकी संस्कृति और उनकी सामाजिक संरचना के बारे में जानकारी प्रदान करती है।

 * सांस्कृतिक: यह कला हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमारी प्राचीन संस्कृति और परंपराओं को दर्शाती है।

 * कलात्मक: प्रागैतिहासिक कला, कला के विकास को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह आदिमानव की रचनात्मकता और कलात्मक कौशल का प्रमाण है।

अध्ययन एवं संरक्षण:

प्रागैतिहासिक कला का अध्ययन करने के लिए पुरातात्विक उत्खनन, कला इतिहास और वैज्ञानिक विश्लेषण जैसी विधियों का उपयोग किया जाता है। इन कलाकृतियों के संरक्षण के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि ये हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहें।

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