भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ की अधिकांश जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर है । विश्व के अनेकों विकसित राष्ट्रों की तुलना में देश में कृषि उत्पादकता काफी कम है । भारतीय कृषि की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह प्रकृति पर अत्यधिक निर्भर है, जहाँ कृषि की सफलता मानसून पर निर्भर करती है जो कि अनिश्चित है । बढ़ती जनसंख्या और घटते संसाधनों के साथ, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उत्पादकता बढ़ाना आवश्यक हो गया है । ऐसे में, क्रमवार कृषि एक ऐसी तकनीक है जो न केवल उत्पादकता बढ़ाती है, बल्कि मृदा स्वास्थ्य को भी बनाए रखती है, और साथ ही प्रकृति पर निर्भरता को कम करने में मदद कर सकती है। यह लेख क्रमवार कृषि के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालेगा, जिसमें इसकी परिभाषा, लाभ, चुनौतियाँ, उपयुक्त फसलें, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, सिंचाई, कीट नियंत्रण, सरकारी नीतियाँ और इसके भविष्य शामिल हैं।
क्रमवार कृषि क्या है?
क्रमवार कृषि, जिसे फसल चक्र भी कहा जाता है, एक ऐसी कृषि पद्धति है जिसमें किसी निश्चित क्षेत्र पर निश्चित अवधि के लिए भूमि की उर्वरता को बनाए रखने के उद्देश्य से फसलों को अदल-बदल कर उगाया जाता है । दूसरे शब्दों में, एक ही भूमि पर विभिन्न फसलों को एक निश्चित क्रम में उगाया जाता है ताकि उर्वरा शक्ति का कम से कम हृस हो । यह मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने, कीटों और बीमारियों को नियंत्रित करने और उत्पादकता बढ़ाने में मदद करता है।
इसके अलावा, क्रमवार कृषि में कृषि पद्धतियों का एक निश्चित क्रम होता है, जो इस प्रकार है: मिट्टी तैयार करना, बुआई, सिंचाई, और कटाई । यह क्रम फसलों के सफल उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है और क्रमवार कृषि में भी लागू होता है।
क्रमवार कृषि के विभिन्न प्रकार हैं, जैसे कि:
- अंतराफसलीयकरण: इसमें एक ही भूमि पर एक साथ दो या दो से अधिक फसलें उगाना शामिल है, लेकिन इसमें क्रमिक रूप से क्रमिक योजना बनाना या साल-दर-साल फसलों को बदलना शामिल नहीं है ।
- समान्तर खेती: एक ही खेत में दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ उगाना ।
- सहचर खेती: एक ही खेत में दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ उगाना, जहाँ एक फसल दूसरी फसल के लिए सहायक होती है ।
- बहुमंजिला खेती: एक ही खेत में विभिन्न ऊँचाइयों वाली फसलों को एक साथ उगाना ।
- मिश्रित खेती: इसका तात्पर्य एक ही खेत में पशुधन पालन को फसल उत्पादन के साथ एकीकृत करने से है । उदाहरण के लिए, पशुओं के गोबर का उपयोग जैविक खाद के रूप में किया जा सकता है।
- फसल चक्र: इस विधि में एक ही भूमि पर दो या दो से अधिक फसलें एक साथ उगाई जाती हैं, खेत में उगाई जाने वाली फसलों का प्रकार हर मौसम में या हर साल बदल जाता है । उदाहरण के लिए, पहले वर्ष में मक्का और दूसरे वर्ष में फलियाँ लगाई जाएँगी। यह फसल चक्र प्रणाली कृषि संरक्षण का एक प्रमुख सिद्धांत है क्योंकि यह मिट्टी की संरचना और उर्वरता में सुधार करती है ।
- खरीफ और रबी फसलें: खरीफ फसलें वर्षा ऋतु (जून से सितंबर तक) में उगाई जाती हैं, जबकि रबी फसलें शीत ऋतु (अक्टूबर से मार्च तक) में उगाई जाती हैं । इन फसलों को क्रमवार कृषि में शामिल करके, किसान साल भर फसल उत्पादन कर सकते हैं और मिट्टी की उर्वरता को बनाए रख सकते हैं।
फसल चक्र गहनता
फसल चक्र गहनता से तात्पर्य एक वर्ष में एक ही भूमि पर उगाई जाने वाली फसलों की संख्या से है । फसल चक्र गहनता बढ़ाने से उत्पादकता बढ़ सकती है क्योंकि भूमि का अधिक कुशलता से उपयोग होता है।
क्रमवार कृषि के लाभ
क्रमवार कृषि के कई लाभ हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- मृदा स्वास्थ्य में सुधार: विभिन्न फसलों की जड़ें मिट्टी में विभिन्न गहराइयों तक पोषक तत्वों को अवशोषित करती हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है । इसके अलावा, फसल चक्रण मिट्टी की संरचना में सुधार करता है और मृदा क्षरण को रोकता है ।
- कीट और रोग नियंत्रण: फसल चक्र कीटों और बीमारियों के जीवन चक्र को तोड़ने में मदद करता है, जिससे उनका प्रकोप कम होता है । इससे रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता कम होती है, जो पर्यावरण के लिए फायदेमंद है।
- उत्पादकता में वृद्धि: मृदा स्वास्थ्य में सुधार और कीट और रोग नियंत्रण से फसलों की उत्पादकता बढ़ती है। इससे किसानों को अधिक उपज प्राप्त होती है और उनकी आय में वृद्धि होती है।
- जैव विविधता: क्रमवार कृषि जैव विविधता को बढ़ावा देती है, जो पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है। इससे मिट्टी में विभिन्न प्रकार के जीवों का विकास होता है, जो मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।
- आय में वृद्धि: उत्पादकता में वृद्धि से किसानों की आय बढ़ती है । इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और उन्हें बेहतर जीवन स्तर प्राप्त करने में मदद मिलती है।
- फसलोपरांत हानि में कमी: क्रमवार कृषि से फसलोपरांत हानि को कम किया जा सकता है । इससे किसानों को अपनी उपज का बेहतर मूल्य मिलता है और उनकी आय में वृद्धि होती है।
- सतत् कृषि: क्रमवार कृषि सतत् कृषि को बढ़ावा देती है । सतत् कृषि से तात्पर्य ऐसी कृषि पद्धतियों से है जो पर्यावरण के अनुकूल हों और भविष्य में भी खाद्य उत्पादन को सुनिश्चित करें।
क्रमवार कृषि की चुनौतियाँ
क्रमवार कृषि के कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जिनका समाधान करना आवश्यक है:
- जागरूकता की कमी: कई किसानों को क्रमवार कृषि के लाभों और उपयुक्त फसल चक्र के बारे में जानकारी नहीं है । इससे उन्हें इस तकनीक को अपनाने में हिचकिचाहट होती है।
- बाजार की अनिश्चितता: किसानों को अपनी फसलों के लिए उचित बाजार मिलने में कठिनाई हो सकती है । इससे उन्हें अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है और उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।
- जलवायु परिवर्तन: बदलते मौसम के कारण फसल चक्र को प्रभावित हो सकता है । इससे फसल उत्पादन में अनिश्चितता बढ़ सकती है और किसानों को नुकसान हो सकता है।
- प्रारंभिक लागत: कुछ फसल चक्रों में प्रारंभिक निवेश अधिक हो सकता है । इससे छोटे और सीमांत किसानों को इस तकनीक को अपनाने में कठिनाई हो सकती है।
- छोटे और सीमांत किसान: भारत में अधिकांश किसान छोटे और सीमांत किसान (SMF) हैं, जिनके पास 2 हेक्टेयर से भी कम भूमि है । इन किसानों के पास सीमित संसाधन होते हैं और उन्हें क्रमवार कृषि को अपनाने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- आर्थिक कठिनाइयाँ: भारत में किसानों की औसत मासिक आय अपेक्षाकृत कम है । इससे उन्हें आधुनिक कृषि उपकरण, गुणवत्तापूर्ण बीज और उर्वरकों में निवेश करने में कठिनाई होती है, जिससे उनकी उत्पादकता में बाधा आती है। क्रमवार कृषि को अपनाने के लिए उन्हें वित्तीय सहायता की आवश्यकता हो सकती है।
क्रमवार कृषि के लिए उपयुक्त फसलें
क्रमवार कृषि के लिए उपयुक्त फसलों का चयन मिट्टी के प्रकार, जलवायु और बाजार की मांग के आधार पर किया जाना चाहिए। कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:
फसल चक्र | क्षेत्र | लाभ |
---|---|---|
चावल-गेहूं-दालें | उत्तरी भारत | मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना, कीट और रोग नियंत्रण |
चावल-चावल-दालें | दक्षिण भारत | जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग, नाइट्रोजन स्थिरीकरण |
मक्का-सोयाबीन-गेहूं | मध्य भारत | मिट्टी के पोषक तत्वों का प्रबंधन, कीट नियंत्रण |
बाजरा-दालें-तिलहन | पश्चिमी शुष्क क्षेत्र | पानी की कमी का प्रबंधन, मिट्टी की उर्वरता में सुधार |
पूसा बासमती 1-गेहूं-दालें | विभिन्न क्षेत्र | उच्च उपज, मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना |
क्रमवार कृषि को अपनाने के लिए सुझाव
किसानों को क्रमवार कृषि को अपनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं:
- जानकारी प्राप्त करें: क्रमवार कृषि के लाभों और उपयुक्त फसल चक्र के बारे में जानकारी प्राप्त करें। इसके लिए, वे कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केंद्रों, और सरकारी वेबसाइटों से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
- मिट्टी परीक्षण कराएँ: मिट्टी परीक्षण से मिट्टी की स्थिति का पता चलेगा और उपयुक्त फसल चक्र का चयन करने में मदद मिलेगी । किसान अपने क्षेत्र के मिट्टी परीक्षण केंद्रों से संपर्क कर सकते हैं।
- विशेषज्ञों से सलाह लें: कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेकर उपयुक्त फसल चक्र और कृषि पद्धतियों का चयन करें। वे कृषि वैज्ञानिकों, कृषि सलाहकारों, और अनुभवी किसानों से सलाह ले सकते हैं।
- सरकारी योजनाओं का लाभ उठाएँ: सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाएँ।
मृदा स्वास्थ्य और पोषक तत्व प्रबंधन
क्रमवार कृषि में मृदा स्वास्थ्य का विशेष महत्व है। स्वस्थ मिट्टी फसलों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करती है और उनकी उत्पादकता बढ़ाती है । मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखना क्रमवार कृषि की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है । मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
- जैविक खाद का उपयोग: जैविक खाद मिट्टी में जैविक पदार्थ और पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाती है । इससे मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ती है और मिट्टी में सूक्ष्म जीवों का विकास होता है, जो मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।
- फसल अवशेषों का प्रबंधन: फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाने से जैविक पदार्थ बढ़ता है । इससे मिट्टी की संरचना में सुधार होता है और मृदा क्षरण कम होता है।
- हरी खाद: हरी खाद मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिर करती है और जैविक पदार्थ बढ़ाती है । इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता कम होती है।
- मिट्टी परीक्षण: मिट्टी परीक्षण से मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी का पता चलता है, जिससे उर्वरकों का सही मात्रा में उपयोग किया जा सकता है । इससे उर्वरकों का अनावश्यक उपयोग कम होता है और मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद मिलती है।
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड: मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को मिट्टी की स्थिति का पता लगाने में मदद करता है । इसमें मिट्टी में विभिन्न पोषक तत्वों की मात्रा, मिट्टी का pH मान, और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी होती है।
- मानव गतिविधियों का मृदा क्षरण में योगदान: मानव गतिविधियाँ जैसे वनों की कटाई, खनन, अत्यधिक जुताई, और रासायनिक उर्वरकों का असंतुलित उपयोग मृदा क्षरण में योगदान करते हैं । मृदा क्षरण को कम करने के लिए इन गतिविधियों को नियंत्रित करना आवश्यक है।
- मृदा स्वास्थ्य समस्याएँ और समाधान: मृदा लवणीयता एक प्रमुख मृदा स्वास्थ्य समस्या है । इसे दूर करने के लिए, किसान जिप्सम, गोबर की खाद, और अन्य जैविक पदार्थों का उपयोग कर सकते हैं।
- पर्यावरण हितैषी तकनीकें: मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए नैनो उर्वरक, कृषि वानिकी, और जैविक खेती जैसी पर्यावरण हितैषी तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है ।
सिंचाई और कीट नियंत्रण
क्रमवार कृषि में सिंचाई और कीट नियंत्रण का भी महत्वपूर्ण स्थान है। फसलों को उचित मात्रा में पानी देना और कीटों से बचाना आवश्यक है।
सिंचाई:
- ड्रिप सिंचाई: ड्रिप सिंचाई जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके पानी की बचत की जा सकती है और फसलों को उचित मात्रा में पानी दिया जा सकता है ।
- अरंडी की फसल में सिंचाई: अरंडी की फसल में सिंचाई प्रबंधन महत्वपूर्ण है । आवश्यकतानुसार सिंचाई करने से उपज में वृद्धि होती है।
- गन्ना में सिंचाई: गन्ना में सिंचाई प्रबंधन भी महत्वपूर्ण है । उचित सिंचाई से उपज और चीनी की मात्रा दोनों में वृद्धि होती है।
- सिंचाई के स्रोत: सिंचाई के लिए विभिन्न स्रोतों जैसे नदी, तालाब, और कुओं का उपयोग किया जा सकता है । किसानों को अपने क्षेत्र में उपलब्ध जल स्रोतों के आधार पर सिंचाई प्रणाली का चयन करना चाहिए।
कीट नियंत्रण:
- एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM): कीट नियंत्रण के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) तकनीक का उपयोग करना चाहिए । इसमें जैविक और रासायनिक दोनों तरह के उपायों का समन्वय होता है।
- IPM के तरीके: IPM में व्यवहारिक, यांत्रिक, जैविक, और रासायनिक नियंत्रण जैसे विभिन्न तरीके शामिल हैं ।
- IPM के लाभ: IPM से रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग कम होता है, पर्यावरण संरक्षण होता है, और फसल उत्पादन में वृद्धि होती है ।
- सब्जियों में कीट नियंत्रण: सब्जियों में कीट नियंत्रण के लिए नीम के अर्क, जैविक कीटनाशकों, और फेरोमेन ट्रैप जैसे विभिन्न तरीकों का उपयोग किया जा सकता है ।
- मिश्रित खेती से कीट नियंत्रण: मिश्रित खेती से कीटों के प्रकोप को कम किया जा सकता है ।
सरकारी नीतियाँ और योजनाएँ
सरकार द्वारा क्रमवार कृषि को बढ़ावा देने के लिए कई नीतियाँ और योजनाएँ चलाई जा रही हैं, जैसे कि:
- राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन: इस मिशन का मुख्य उद्देश्य सतत कृषि के सिद्धांतों को प्रोत्साहित करना है। यह कार्यक्रम मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, जल संरक्षण और जैविक खेती की प्रथा को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
- परंपरागत कृषि विकास योजना: इस योजना के अंतर्गत जैविक खेती को प्राथमिकता दी जाती है। इसके माध्यम से रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग में कमी आती है, जिससे पर्यावरण की सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है।
- कृषि वानिकी पर उप-मिशन: इस उप-मिशन का लक्ष्य कृषि वानिकी को प्रोत्साहित करना है। कृषि वानिकी के अनेक लाभ हैं, जैसे मृदा क्षरण में कमी, जल संरक्षण, और किसानों के लिए अतिरिक्त आय स्रोत का निर्माण।
- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना: इस योजना के तहत किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इससे उन्हें आधुनिक कृषि उपकरण, उच्च गुणवत्ता वाले बीज, और उर्वरकों में निवेश करने में मदद मिलती है।
- निर्यात नीतियों में सुधार: सरकार निर्यात नीतियों में सुधार करके क्रमवार कृषि के विकास को प्रोत्साहित कर सकती है। इसका परिणाम यह होता है कि किसानों को अपनी उपज का अधिक मूल्य प्राप्त होता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
- कृषि बजट में बढ़ोतरी: सरकार कृषि बजट में बढ़ोतरी करके क्रमवार कृषि को बढ़ावा दे सकती है । इससे कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ता है और किसानों को बेहतर सुविधाएँ मिलती हैं।
क्रमवार कृषि का भविष्य
क्रमवार कृषि का भविष्य अत्यंत उज्ज्वल प्रतीत होता है। निरंतर बढ़ती जनसंख्या और संसाधनों की कमी को देखते हुए, यह तकनीक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। साथ ही, यह स्थायी कृषि को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक होगी। डॉ रुडोल्फ स्टेनर द्वारा विकसित बायोडायनामिक खेती जैसी नवाचारों से क्रमवार कृषि की क्षमता को और भी बढ़ाया जा सकता है। कृषि क्लस्टर के विकास से भी इस तकनीक को आगे बढ़ाने में सहायता मिल सकती है।
क्रमवार कृषि एक ऐसी वैकल्पिक प्रणाली है जो न केवल उपज को बढ़ाती है, बल्कि मृदा के स्वास्थ्य को बनाए रखते हुए स्थायी कृषि को भी बढ़ावा देती है। यह खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान देगी। किसानों को इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रेरित करने की आवश्यकता है, और सरकार को इसे समर्थन देने वाले आवश्यक नीतियों और कार्यक्रमों को विकसित करना चाहिए। क्रमवार कृषि को अपनाने से न केवल किसानों की आय में इजाफा होगा, बल्कि यह पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ भारत की खाद्य सुरक्षा को भी सुनिश्चित करेगी।