शुष्क कृषि: न्यूनतम जल उपलब्धता में की जाने वाली कृषि

शुष्क कृषि, जिसे बारानी खेती भी कहा जाता है, ऐसी कृषि पद्धति है जिसमें सिंचाई के बिना ही फसलों का उत्पादन किया जाता है। यह उन क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जहाँ वर्षा बहुत कम होती है (50-75 सेमी) या सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध नहीं होता है। शुष्क कृषि में, सीमित नमी का उपयोग करके फसलों को उगाया जाता है और मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए विभिन्न तकनीकों का प्रयोग किया जाता है । भारत में शुष्क कृषि का बहुत महत्व है क्योंकि देश के अधिकांश अनाज, दालें और तिलहन का उत्पादन इन्हीं क्षेत्रों में होता है । जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, शुष्क कृषि, टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है ।  

यह लेख शुष्क कृषि के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालेगा, जिसमें इसकी परिभाषा, उपयुक्त फसलें, जल संरक्षण तकनीकें, मृदा प्रबंधन, जैविक खेती के लाभ, सरकारी योजनाएं, सफल उदाहरण, चुनौतियां और समाधान शामिल हैं।

शुष्क कृषि की परिभाषा और विभिन्न पहलू

शुष्क कृषि उन क्षेत्रों में की जाने वाली खेती है जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 50-75 सेमी से कम होती है । इन क्षेत्रों में सिंचाई सुविधाओं का अभाव होता है और किसानों को वर्षा पर ही निर्भर रहना पड़ता है । शुष्क कृषि में, मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए किसान कई विधियाँ अपनाते हैं, जैसे कि गहरी जुताई, मल्चिंग, और वर्षा जल संचयन । यह ध्यान देने योग्य है कि भारत में दालों का लगभग 85% उत्पादन शुष्क कृषि क्षेत्रों में होता है, जो इस पद्धति के महत्व को दर्शाता है ।  

शुष्क कृषि के कुछ महत्वपूर्ण पहलू निम्नलिखित हैं:

  • न्यूनतम जल उपयोग: शुष्क कृषि में सिंचाई का उपयोग नहीं किया जाता है, इसलिए यह जल संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण पद्धति है।
  • मृदा नमी संरक्षण: मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि गहरी जुताई, मल्चिंग, और वर्षा जल संचयन।
  • सूखा प्रतिरोधी फसलें: शुष्क कृषि के लिए ऐसी फसलों का चयन किया जाता है जो कम पानी में भी अच्छी पैदावार दे सकती हैं।
  • मृदा स्वास्थ्य: शुष्क कृषि में मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जैविक खाद और फसल चक्र का उपयोग किया जाता है।

शुष्क कृषि के लिए उपयुक्त फसलें

शुष्क कृषि के लिए ऐसी फसलों का चयन करना महत्वपूर्ण है जो कम पानी में भी अच्छी पैदावार दे सकती हैं । इसके अलावा, शुष्क क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसलों के बीजों का अंकुरण दर कम होने के कारण, सामान्य से 10-15% अधिक बीज बोने की सलाह दी जाती है ।  

कुछ उपयुक्त फसलें, उनके गुण और उपयोग नीचे तालिका में दिए गए हैं:

CropQualitiesUses
बाजरासूखा प्रतिरोधी, कम पानी और उर्वरक में अच्छी पैदावाररोटी, दलिया, पशु आहार
ज्वारसूखा प्रतिरोधी, कम पानी में अच्छी पैदावाररोटी, दलिया, पशु आहार
मूंगफलीतिलहन फसल, शुष्क क्षेत्रों के लिए उपयुक्तखाने का तेल, मूंगफली का मक्खन
अरहरदलहन फसल, कम पानी में अच्छी पैदावारदाल, पशु आहार
चनादलहन फसल, शुष्क क्षेत्रों के लिए उपयुक्तदाल, बेसन
मसूरदलहन फसल, कम पानी में अच्छी पैदावारदाल
आंवला, अनार, बेरपोषक तत्वों से भरपूर, विटामिन सी, फास्फोरस और कैल्शियम प्रचुर मात्रा मेंफल, जूस, औषधीय उपयोग

शुष्क बागवानी की संभावनाएं

शुष्क क्षेत्रों में बागवानी फसलों की खेती से किसानों को कम लागत में अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है । यह सीमित समय में अधिकतम लाभ प्रदान कर सकती है और किसानों की आय बढ़ाने में मदद कर सकती है।  

शुष्क कृषि में जल संरक्षण तकनीकें

शुष्क कृषि में जल संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है।

कुछ जल संरक्षण तकनीकें निम्नलिखित हैं:

  • वर्षा जल संचयन: वर्षा के पानी को जमा करके बाद में सिंचाई के लिए उपयोग किया जा सकता है ।  
  • छत प्रणाली से वर्षा जल संग्रहण: घरों की छतों पर गिरने वाले वर्षा जल को संग्रहित करके घरेलू उपयोग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है ।  
  • तालाब निर्माण: तालाबों का निर्माण करके वर्षा जल को संग्रहित किया जा सकता है और बाद में सिंचाई के लिए उपयोग किया जा सकता है ।  
  • खड़ीन: खड़ीन मिट्टी का बना एक अस्थायी तालाब होता है जो वर्षा जल को संग्रहित करने के लिए बनाया जाता है ।  
  • भूमि प्रबंधन: उचित भूमि प्रबंधन द्वारा वर्षा जल को मिट्टी में सोखने और नमी बनाए रखने में मदद मिलती है ।  
  • समोच्च जुताई: ढलान के समानांतर जुताई करके जल अपवाह को कम किया जा सकता है और मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद मिलती है ।  
  • गहरी जुताई: गहरी जुताई करके मिट्टी में पानी सोखने की क्षमता बढ़ाई जा सकती है ।  
  • लेजर लेवलिंग: लेजर लेवलिंग तकनीक से धान के खेतों में 10% और गेहूं के खेतों में 10-20% पानी की बचत की जा सकती है ।  
  • ड्रिप सिंचाई: ड्रिप सिंचाई से जल उपयोग क्षमता 80% से अधिक होती है और पारंपरिक सिंचाई की तुलना में 40-50% पानी की बचत की जा सकती है ।  

शुष्क कृषि में मृदा प्रबंधन

शुष्क कृषि में मृदा प्रबंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

कुछ मृदा प्रबंधन तकनीकें निम्नलिखित हैं:

  • मल्चिंग: खरीफ फसल कटने के बाद खेत में पुआल या पत्तियाँ बिछाकर मिट्टी की नमी को उड़ने से बचाया जा सकता है ।  
  • जलछाजन: जलछाजन के अनुसार भूमि का वर्गीकरण करके भूमि और जल का प्रबंधन सही ढंग से किया जा सकता है ।  
  • भूमि प्रबंधन: कन्टूर बांध, टेरेसिंग और स्ट्रीप क्रॉपिंग जैसी तकनीकों का उपयोग करके मृदा अपरदन को कम किया जा सकता है ।  
  • जैविक खाद: जैविक खाद का उपयोग करके मिट्टी की उर्वरता और जल धारण क्षमता बढ़ाई जा सकती है ।  
  • फसल चक्र: फसल चक्र अपनाकर मिट्टी के पोषक तत्वों को संतुलित रखा जा सकता है ।  
  • वृक्षारोपण: फलदार वृक्षों के साथ खेती करने से वायु अपरदन कम होता है और मिट्टी में जैविक पदार्थों की मात्रा बढ़ती है ।  
  • वर्मी कम्पोस्ट: वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से मिट्टी की जल धारण क्षमता में सुधार होता है ।  

शुष्क कृषि में जैविक खेती के लाभ

शुष्क कृषि में जैविक खेती के कई लाभ हैं।

कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

  • मृदा स्वास्थ्य: जैविक खेती से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और मिट्टी स्वस्थ रहती है ।  
  • जल संरक्षण: जैविक खेती से मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ती है, जिससे जल संरक्षण में मदद मिलती है ।  
  • पर्यावरण संरक्षण: जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है, जिससे पर्यावरण संरक्षित रहता है ।  
  • स्वास्थ्य लाभ: जैविक खेती से उपजे खाद्य पदार्थ रसायन मुक्त होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं ।  
  • आर्थिक लाभ: जैविक उत्पादों की मांग बढ़ रही है, जिससे किसानों को अधिक आय प्राप्त होती है ।  
  • एकीकृत कृषि प्रणाली: शुष्क कृषि में पशुपालन को शामिल करने से मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है और भूजल का कुशलतापूर्वक उपयोग होता है ।  

शुष्क कृषि से संबंधित सरकारी योजनाएं और नीतियां

भारत सरकार शुष्क कृषि को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं और नीतियां चला रही है।

कुछ प्रमुख योजनाएं निम्नलिखित हैं:

  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): इस योजना का उद्देश्य सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करना और जल उपयोग क्षमता बढ़ाना है ।  
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): इस योजना के तहत किसानों को फसल नुकसान के खिलाफ बीमा प्रदान किया जाता है ।  
  • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY): इस योजना के तहत कृषि क्षेत्र के विकास के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है ।  
  • शुष्क बागवानी योजना: बिहार सरकार द्वारा चलाई जा रही इस योजना के तहत किसानों को खेत की मेड़ पर शुष्क खेती लगाने के लिए 50 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है ।  
  • फसल विविधीकरण योजना: बिहार सरकार द्वारा चलाई जा रही इस योजना के तहत किसानों को आंवला, नींबू, बेल और कटहल की खेती करने के लिए 50 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है ।  
  • जैविक खेती प्रमाणन के लिए अनुदान: सरकार जैविक खेती अपनाने वाले किसानों को 10,000 रुपये तक का अनुदान प्रदान करती है ।  

शुष्क कृषि के सफल उदाहरण

भारत में शुष्क कृषि के कई सफल उदाहरण हैं।

कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • राजस्थान में खड़ीन: राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में खड़ीन का उपयोग करके किसान सफलतापूर्वक खेती कर रहे हैं ।  
  • गुजरात में बाजरा उत्पादन: गुजरात में बाजरा की खेती शुष्क कृषि का एक सफल उदाहरण है ।  
  • महाराष्ट्र में मूंगफली उत्पादन: महाराष्ट्र में मूंगफली की खेती शुष्क कृषि का एक सफल उदाहरण है ।  
  • कर्नाटक में रागी उत्पादन: कर्नाटक में रागी की खेती शुष्क कृषि का एक सफल उदाहरण है ।  

शुष्क कृषि की चुनौतियां और समाधान

शुष्क कृषि के सामने कई चुनौतियां हैं।

कुछ प्रमुख चुनौतियां निम्नलिखित हैं:

  • जल की कमी: शुष्क क्षेत्रों में जल की कमी एक प्रमुख चुनौती है ।  
  • मृदा अपरदन: शुष्क क्षेत्रों में मृदा अपरदन एक गंभीर समस्या है ।  
  • अनिश्चित वर्षा: शुष्क क्षेत्रों में वर्षा अनिश्चित और अनियमित होती है ।  
  • निम्न उर्वरता: शुष्क क्षेत्रों की मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी होती है ।  
  • आर्थिक चुनौतियां: शुष्क क्षेत्रों में किसानों को आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि कम उत्पादन और बाजार तक पहुंच की कमी ।  

इन चुनौतियों से निपटने के लिए कुछ समाधान निम्नलिखित हैं:

  • जल संरक्षण तकनीकें: वर्षा जल संचयन, तालाब निर्माण, और भूमि प्रबंधन जैसी तकनीकों का उपयोग करके जल संरक्षण किया जा सकता है ।  
  • सूखा प्रतिरोधी फसलें: सूखा प्रतिरोधी फसलों की खेती करके जल की कमी से निपटा जा सकता है ।  
  • मृदा संरक्षण: मल्चिंग, समोच्च जुताई, और वृक्षारोपण जैसी तकनीकों का उपयोग करके मृदा अपरदन को कम किया जा सकता है ।  
  • जैविक खेती: जैविक खेती से मृदा स्वास्थ्य में सुधार होता है और मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ती है ।  
  • सरकारी योजनाएं: सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ उठाकर किसान शुष्क कृषि को अपना सकते हैं ।  
  • टिकाऊ उत्पादन: कम जोखिम वाली टिकाऊ उत्पादन प्रणालियों को अपनाकर किसान आर्थिक चुनौतियों से निपट सकते हैं ।  

शुष्क कृषि की पद्धति उन क्षेत्रों में अत्यधिक महत्वपूर्ण साबित होती है जहाँ जल की कमी एक चुनौती है। उचित जल संरक्षण उपायों, मृदा प्रबंधन तकनीकों, और सूखा प्रतिरोधी फसलों का चयन करके किसान शुष्क क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक खेती कर सकते हैं। जैविक खेती को अपनाने से मृदा की गुणवत्ता में सुधार होता है और पर्यावरण की रक्षा संभव होती है। इसके अतिरिक्त, सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर किसान अपने शुष्क कृषि प्रयासों को और अधिक लाभदायक बना सकते हैं।

जनसंख्या के बढ़ते दबाव और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के चलते, शुष्क कृषि का महत्व भविष्य में और अधिक बढ़ने की संभावना है। टिकाऊ कृषि उपायों, जल संरक्षण तकनीकों, और मृदा स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करके, शुष्क कृषि खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने और पर्यावरण संरक्षण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

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