पुरातात्विक साक्ष्यों से पता चलता है कि संगीत वाद्ययंत्रों का इतिहास पाषाण काल तक का है, जिसमें हड्डी से बनी बांसुरी और सीटी जैसे वाद्ययंत्र मिले हैं। नवपाषाण काल में मिट्टी के ढोल और शंख के तुरही जैसे वाद्ययंत्रों का प्रमाण मिला है । यह दर्शाता है कि संगीत वाद्ययंत्र मानव सभ्यता का एक अभिन्न अंग रहे हैं, जो संस्कृतियों और परंपराओं में गहराई से जुड़े हुए हैं। विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों को समझने के लिए, उन्हें वर्गीकृत करना आवश्यक है। वाद्य यंत्रों का वर्गीकरण हमें उनके निर्माण, ध्वनि उत्पादन के तरीके और संगीत परंपराओं में उनकी भूमिका को समझने में मदद करता है।
वाद्य यंत्रों के प्रकार
सामान्यतः, वाद्य यंत्रों को चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है :
- तंत वाद्य (Chordophones): ये वाद्य यंत्र तारों के कंपन से ध्वनि उत्पन्न करते हैं। तारों को झंकृत करके, धनुष से रगड़कर या हथौड़े से मारकर बजाया जा सकता है।
- उदाहरण: सितार , गिटार , वायलिन , वीणा , सरोद
- सुषिर वाद्य (Aerophones): इन वाद्य यंत्रों में हवा के कंपन से ध्वनि उत्पन्न होती है।
- उदाहरण: बांसुरी , शहनाई , तुरही , सैक्सोफोन
- अवनद्ध वाद्य (Membranophones): इन वाद्य यंत्रों में किसी झिल्ली या चमड़े के कंपन से ध्वनि उत्पन्न होती है।
- उदाहरण: तबला , ढोलक , मृदंगम , ड्रम
- घन वाद्य (Idiophones): इन वाद्य यंत्रों में स्वयं वाद्य यंत्र के कंपन से ध्वनि उत्पन्न होती है।
- उदाहरण: झांझ , मंजीरा , घंटा , जाइलोफोन
वाद्य यंत्रों का वर्गीकरण
वाद्य यंत्रों को वर्गीकृत करने के लिए कई प्रणालियां हैं। पश्चिमी संगीत में, वाद्य यंत्रों को तंत, सुषिर, अवनद्ध और घन वाद्य में विभाजित किया जाता है । हालाँकि, इस प्रणाली में कुछ वाद्य यंत्रों को वर्गीकृत करने में समस्याएं हैं, जैसे कि पियानो, जिसमें तार होते हैं लेकिन उन्हें हथौड़ों से मारा जाता है । इसी तरह, प्राचीन चीन में, वाद्य यंत्रों को उनके निर्माण की सामग्री के आधार पर वर्गीकृत किया जाता था, जैसे पत्थर, लकड़ी, रेशम और बांस ।
वाद्य यंत्रों को वर्गीकृत करने की सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली प्रणाली हॉर्नबोस्टेल-सैक्स प्रणाली है । इस प्रणाली को 1914 में एरिच मोरित्ज़ वॉन हॉर्नबोस्टेल और कर्ट सैक्स द्वारा विकसित किया गया था । यह प्रणाली वाद्य यंत्रों को ध्वनि उत्पन्न करने के तरीके के आधार पर पाँच मुख्य श्रेणियों में विभाजित करती है :
श्रेणी | विवरण | उदाहरण |
---|---|---|
इडियोफोन | स्वयं वाद्य यंत्र के कंपन से ध्वनि उत्पन्न होती है | झांझ, मंजीरा, घंटा, जाइलोफोन |
मेम्ब्रेनोफोन | किसी झिल्ली या चमड़े के कंपन से ध्वनि उत्पन्न होती है | तबला, ढोलक, मृदंगम, ड्रम |
कॉर्डोफोन | तारों के कंपन से ध्वनि उत्पन्न होती है | सितार, गिटार, वायलिन, वीणा, सरोद |
एरोफोन | हवा के कंपन से ध्वनि उत्पन्न होती है | बांसुरी, शहनाई, तुरही, सैक्सोफोन |
इलेक्ट्रोफोन | विद्युत क्रिया या प्रवर्धन द्वारा ध्वनि उत्पन्न होती है | सिंथेसाइज़र, इलेक्ट्रिक गिटार |
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हॉर्नबोस्टेल-सैक्स प्रणाली को बाद में इलेक्ट्रोफोन को पाँचवीं श्रेणी के रूप में जोड़कर अद्यतित किया गया था । यह प्रणाली पदानुक्रमित रूप से संरचित है, जिसमें प्रत्येक श्रेणी को एक अंक दिया जाता है जो विस्तार के प्रत्येक स्तर के साथ बढ़ता जाता है । यह प्रणाली सभी संस्कृतियों के वाद्य यंत्रों को वर्गीकृत करने में सक्षम है, जिससे यह संगीत वाद्ययंत्रों के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बन गया है ।
1880 में, विक्टर-चार्ल्स माहिलोन ने भारतीय नाट्य शास्त्र को अनुकूलित किया और चार वर्गीकरणों को ग्रीक नाम दिए: कॉर्डोफोन (तंत वाद्य), मेम्ब्रेनोफोन (अवनद्ध वाद्य), एरोफोन (सुषिर वाद्य), और ऑटोफोन (घन वाद्य) । संगीत वाद्ययंत्रों के विकास के इतिहास में ढोल, पाइप और वीणा के चरणों को लेकर भी बहस हुई है ।
विभिन्न संगीत परंपराओं में वाद्य यंत्रों का उपयोग
विभिन्न संगीत परंपराओं में वाद्य यंत्रों का उपयोग अलग-अलग होता है और अक्सर उनके निर्माण में उपयोग की जाने वाली सामग्री उस संस्कृति के पर्यावरण और मूल्यों को दर्शाती है । उदाहरण के लिए, भारतीय शास्त्रीय संगीत में सितार, तबला और बांसुरी जैसे वाद्य यंत्रों का प्रमुख स्थान है, जबकि पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में वायलिन, पियानो और तुरही जैसे वाद्य यंत्रों का उपयोग अधिक होता है । लोक संगीत में, विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है।
अफ्रीकी संगीत में, ढोलक एक महत्वपूर्ण वाद्य यंत्र है जिसका उपयोग सामुदायिक समारोहों और नृत्यों में किया जाता है । इसी तरह, चीनी संगीत में, गुकिन नामक एक प्राचीन वाद्य यंत्र विद्वानों और आध्यात्मिक साधकों के बीच लोकप्रिय है । स्पेनिश फ्लेमेंको संगीत में, फ्लेमेंको गिटार का उपयोग भावनाओं और अनुभवों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है ।
विश्व संगीत वाद्ययंत्रों ने समकालीन संगीत को भी प्रभावित किया है। उदाहरण के लिए, बीटल्स ने अपने संगीत में सितार का उपयोग किया, जिससे भारतीय शास्त्रीय संगीत पश्चिमी दर्शकों तक पहुँचा । विश्व संगीत वाद्ययंत्रों का उपयोग सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देने और संगीत के नए आयामों को खोलने में मदद करता है ।
वाद्य यंत्रों का वर्गीकरण और विभिन्न संगीत परंपराओं में उनके उपयोग को समझना संगीत के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है। हॉर्नबोस्टेल-सैक्स प्रणाली वाद्य यंत्रों को वर्गीकृत करने के लिए एक व्यापक और उपयोगी प्रणाली है जो हमें विभिन्न संस्कृतियों के संगीत वाद्ययंत्रों को समझने में मदद करती है। यह प्रणाली सभी संस्कृतियों के वाद्य यंत्रों को वर्गीकृत करने की क्षमता के कारण संगीत के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। वाद्य यंत्रों के निर्माण में प्रयुक्त सामग्री, उनकी ध्वनि और सांस्कृतिक संदर्भ को समझना हमें संगीत की विविधता और समृद्धि की सराहना करने में मदद करता है।